Thursday, August 12, 2010

सावन तीज उत्सव 2010



श्रावणी तीज के अवसर पर जयपुर में तीन दिवसीय तीज महोत्सव का आयोजन किया गया| 9 अगस्त से इसका शुभारभ 'जवाहर कला केंद्र' के शिल्प ग्राम में एक मेले के आयोजन से हुआ| जो तीन दिन तक चला| राजस्थान पर्यटन विभाग द्वारा आयोजित इस महोत्सव में राजस्थान के सुदूर ग्रामीण इलाकों में फैले कई कलाकारों, लोक नर्तकों व गायकों को अपनी कला के प्रदर्शन का मौका मिला| जिसका की प्रदेश के कला पारखीयों का भरपूर प्यार व प्रोत्साहन मिला|

इस मेले में इन कलाकरों की कला व ग्रामीण जीवन हमने करीब से देखा व समझा| ये अनुभव में आप से साझा करना चाहूँगा| इस मेले को अपनी कलात्मक नज़र से देखने में मेरा साथ दिया है "मानव सिंघी" ने, जिनके छाया चित्रों से आप राजस्थान की एक जीवंत झलक पा सकते है|

समारोह में मुख्यद्वार पर शहनाई वादक आगुन्तकों का स्वागत करने को आतुर थे| अन्दर प्रवेश करते ही वहां का विहंगम द्रश्य देख कर हृदय पुलकित हो उठा| वहां की साज सज्जा बिलकुल एक गाँव की चौपाल पर लगे मेले का एहसास करवा रही थी| एक तरफ कच्ची घोड़ी का न्रत्य हो रहा था| रंग बिरंगे सामानों से सजी दुकाने थी| स्त्रियों के लिए 'लाख' के कड़े और अन्य श्रंगार के सामान तीज उत्सव की भावना को जीवंत कर रही थी| स्त्रियों के लिए मेहंदी लगाने का विशेष इन्तेजाम था| पेड़ों पर लगे झूलों पर लड़कियां और औरतें झूल रही थी| नट के करतब तो कमाल थे, साथ ही कुम्भार मिटटी के दीये और घड़े बनाने के प्रदर्शन कर रहा था| इस कला पर कुछ लोग भी अपना हुनर आजमा रहे थे| वातावरण में ग्रामीण मिट्टी की महक हम महसूस कर पा रहे थे|

बच्चे कठपुतली के खेल व पुराने ज़माने का बाईस्कोप देख कर हैरान थे| शायद इन् कंप्यूटर गेमस के ज़माने में नयी पौध को अपनी जड़ों से जोड़ने का एक अच्छा प्रयास है| शाम को कुछ अच्छे कार्यक्रम भी हुए जिसमे चकरी नृत्य, लोक गायन, कठपुतली का खेल और दर्शकों के लिए कई प्रकार के खेल भी रखे गए थे| लोक कलाकारों के साथ साथ अंतररास्ट्रीय ख्याति प्राप्त सरोद वादक उस्ताद अमान अली और अयान अली खान का सरोद वादन मध्यवर्ती मंच पर रखा गया| अपने सूफियाना अंदाज़ में विभिन्न रागों से तबले और पखावज से जो संगत की तो एक अलौकिक समां बांध दिया| शायद हमारे शास्त्रीय संगीत का ही जादू है की सीधे दिल से निकलता है और धड़कन में समां जाता है|



समारोह का तीसरा दिन राजस्थानी लोक गायकों के नाम रहा| शाम सात बजे से ही लोग जमा होने लगे और अंत तक सुनते रहे| जब कलाकारों के दल ने भवई नृत्य प्रस्तुत किया, उनकी कला देख कर लोग दंग रह गए| फिर अलवर से आये मुस्लिम कलाकारों, जो की शिव भक्ति में समर्पित भजन गाते है; ने भुपंग वादन किया| भुपंग एक तार का वाद्य है जो पहले कच्ची घिया से बनाया जाता था और ठेट मरू भूमि का वाद्य है| कलाकारों ने बड़े ही मजाकिया ठंग से गंभीर बातें रखी| गंगा-जमुनी संस्कृति का ऐसा मेल तो छोटी काशी में ही देखने को मिलता है| इन् मेवाती कलाकारों ने जो समां बंधा और लोगो को जोड़ कर अपनी जुगलबंदी का जादू दिखाया की सुनने वाले कायल हो गए|



फिर भरतपुर से आये कलाकारों ने कृष्ण लीला का द्रश्य साकार किया| ये दल कुछ दिनों पहले ही अमेरिका में एक कार्यक्रम दे कर लौटा है| कृष्ण का राधा संग रास, और गोपियों का नृत्य व फूलों की होली, गुलाबी नगरी को मथुरा बना दिया| नन्द के लाल का श्रंगार और मोहक रूप देखने लायक था| केंद्र के मध्यवर्ती मुक्ताकाश मंच पर गुलाब और मोगरे के फूल ही फूल थे और मोरपंख नृत्य से तो नजर ही नहीं हटती थी|
एक अदभूत द्रश्य था| सभागार पूरी तरह से भरा था और लोग खड़े रह कर देख रहे थे| काले काले बादल छाए थे लेकिन बारिश नहीं हुई, शायद वो भी कृषणलीला में मुग्ध हो कर बरसना भूल गए|



11 अगस्त को तीन दिवसीय समारोह का अंतिम दिन था| पर लोगों का मन नहीं भरा, शायद आज की भाग दौड़ भरी जिंदगी में इन्सान जीवन रूपी उत्सव को मानना ही भूल गया है| इस प्रकार के आयोजन से हमे ये मौका मिला की कुछ दिनों के लिए ही सही पर जीवन का सही माने है उसे जी ले|



12 अगस्त को तीज के दिन जयपुर में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है| इस दिन शहर के त्रिपोलिया बाज़ार से राजघराने की तरफ से शाही सवारी निकाली जाती है| वैसे तो तीज उत्तर भारत के कई प्रदेशो में मनाई जाती है पर जयपुर की तीज की बात ही अलग है| किसी को अगर रंगीले राजस्थान की झलक देखनी हो तो उसे जयपुर तीज उत्सव जरुर देखने आना चाहिए| तीज माता की सवारी त्रिपोलिया गेट से प्रारभ हो कर छोटी चोपड़ से गनगौरी बाज़ार होती हुई ताल कटोरा के पास पहुँचती है फिर वहां पूजन के बाद वापस त्रिपोलिया तक| इस झांकी में राज निशान वाला हाथी, सोने चांदी की पालकी, तोपें, सजे उंट, घोड़े, बुलंद झंडे सभी कुछ था| शहर के कुछ खास बैंड पूरी सजी पौशाक में राजस्थानी धुन बजा रहे थे| कालबेलिया नृत्य से माहोल में मस्ती छा रही थी| कई देशो के सैलानी भी यहाँ भारतीय लोक उत्सव का मजा लेने आये| कुछ तो उनकी ताल से ताल भी मिला रहे थे| फ्रांस से आई जेनिफ़र का कहना है की वो दूसरी बार जयपुर आई है लेकिन लगता है की अभी २-३ बार और आना होगा इसे पूरे से देखने - समझने के लिए|



आस पास के गाँव वाले दिन में १-२ बजे ही आ गए थे उनके लिए इसका धार्मिक महत्व ज्यादा था कुछ घुमने के लिए और कुछ दर्शन की लिए आये| लोगों का हुजूम देखने लायक था और गलियों में, बाज़ारों में, छतों पर, जिधर देखो लोग ही लोग नज़र आ रहे थे| हम जिस मीडिया स्टैंड में थे वहां देश के सभी प्रमुक टी. वी. चैनल और अखबार वाले इसे कवर करने को तैयार थे| 13 अगस्त को बूढी तीज की सवारी भी निकली|

सावन के इस महीने में तीज के अवसर पर इस प्रकार का आयोजन काफी अच्छा रहा और इस बहाने से राजस्थानी लोक कला और संस्कृति का परिचय आज की पीढ़ी को हुआ साथ ही लुप्त होती लोक कला को संबल मिला| शायद इसी से इस आयोजन का प्रयोजन सिद्ध होता है| आप लोगों को भी कभी मौका मिले तो इस मेले का एक बार जरुर आनंद ले| हर साल श्रावणी तीज व गणगौर मेले का आयोजन होता है|

शायद प्रचार का आभाव समझ ले या नयी पीढ़ी की उदासीनता या की आज का व्यस्त जीवन, पर अपने आस पास इतना अच्छा और रसपूर्ण कार्य क्रम होने के बावजूद हम इस में शामिल नहीं होते सिर्फ इस के बारे में समाचार पत्रों में पढ़ कर ही हमें पता चलता है |



ये मेरा पहला प्रयास है और शायद में अपने शब्दों के साथ इतना अच्छा भी नहीं हूँ.... की अपनी अनुभूति को व्यक्त कर सकूँ बेहतर होगा अगली बार आप खुद इसे महसूस करे|

आपके विचार और सुझाव आमंत्रित है

आपका मित्र,
पवन सिंह,
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